Jurm ki Dasta - 1 in Hindi Thriller by Salim books and stories PDF | जुर्म की दास्ता - भाग 1

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जुर्म की दास्ता - भाग 1

"इस लड़की ने हिन्दुस्तान आना कब है?" कुलवन्त ने अपने हाथ में पकड़ी हुई उस रंगीन तस्वीर को देखते हुए पूछा।

तस्वीर में कैमरे की ओर देखकर मुरकराती हुई लड़की तो हिन्दुस्तानी थी किन्त पृष्ठ भूमि विदेशी।

"आज रात..... या यूं समझो कि कल सुबह के प्लेन से आ रही है।" सुजानसिंह ने कहा।

"अकेली या कोई और भी साथ है?"

"एक नौकरानी साथ आ रही है।"

"कोई मर्द तो साथ नहीं है?"

"नही।"

"कमाल की हिम्मती लड़की है।" कुलवन्त ने फिर तस्वीर की ओर देखते हुए प्रशंसात्मक स्वर में कहा-" इतनी दूर अमरीका से अकेली आ रही है? एक हमारे घर की औरतें हैं, बिना मर्द के घर से बाहर ही नहीं निकलतीं।"

"यहां यह बहस करने की बात नहीं है कि हमारे घर की औरतें क्या करती हैं क्या नहीं।" सुजान बुरा-सा मुंह बनाकर बोला-"सोचना तो यह है कि इस छोकरी का क्या किया जाए?"

"वह तैयारी तो तुम पहले ही कर चुके हो?"
"खाली तैयारी करने से क्या होता है? उसे कार्यरूप भी तो देना है जो तुम्हारी मदद के बिना सम्भव नहीं है।"

"तुम जानते हो वकील कि कुलवन्त यारों का यार है।" कुलवन्त बोला-"तुम अक्सर हमारी कानूनी मदद करते रहे

हो। अब तुम्हें मदद चाहिए तो कुलवन्त पीछे हटने वाला नहीं लेकिन अब तक तुमने जो कुछ बताया है उससे सारी बात पूरी तरह मेरी समझ में नहीं आई। पहले मुझे सारा किस्सा खोल कर बताओ।"

तभी नौकर आ गया। एक ट्रे में दो गिलास और व्हिस्की की बोतल, सोडे व बर्फ की ट्रे इत्यादि लिए हुए।

"रहमत मियां जाते हुए दरवाजा बन्द कर देना। "सुजान ने मेज पर सामान रखते हुए वृद्ध नौकर से कहा- "और ध्यान' रहे कि मेरे बुलाए बिना अब कोई कमरे में न आए।"

"जी सरकार।"

नौकर के जाने के बाद दो गिलासों में व्हिस्की डालते हुए सुजान ने बताना शुरू किया।

"सेठ पदमचन्द क् नाम तो तुमने सुना ही होगा। इस शहर की क्या पूरे प्रान्त की मानी हुई हस्ती थे। वे जब मरे तो अपने पीछे लगभग बीस करोड की जायदाद छोड़ गए थे जिसकी मालिक है उनकी यह इकलौती लड़की शैफाली जिसकी तुम तस्वीर देख रहे हो। पदमचन्द की मौत के वक्त शेफाली की उम्र रही होगी लगभग आठ नौ साल की। यहां कोई दूर पास का ऐसा रिश्तेदार नहीं था जिस पर भरोसा रिया जा सकता हां एक मौसा-मौसी थे लेकिन वे दूर अमरीका में रहते थे। मेरे पिता त्रिलोचन सिंह न केवल सेठ के वकील थे बल्कि उसके घनिष्ठ मित्र भी मरने से पहले सेठ एक वसीयत कर गया था जिसके मुताविक शेफाली के इक्कीस साल की होने अथवा शादी करने तथा समस्त सम्पत्ति की देखभाल मेरे पिता ही करेंगे। सेठ के मरने ले बाद अमरीका से शेफाली के मौसा का संदेश आया कि परवरिश के लिए उसे वहां भेज दिया जाए। सो पिताजी ने उसे वहां भेज दिया। मेरे पिताजी को तो तुम जानने ही थे। एक नम्बर के ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ आदमी।"

"मालूम है।" कुलवन्त व्हिस्की का गहरा घूंट भरता हुआ बोला- "तभी तो जिन्दगी भर किराए के मकान में रहे न और वहीं मरे। करोड़ों की दौलत का इन्तजाम करते थे। किंतु अपने लिए एक झोंपड़ी तक नहीं बनवा सके।"

"दूसरे के पैसे को हाथ लगाना भी पाप समझते थे वे।"

सुजानसिंह एक सिगरेट सुलगता हुआ बोला- "एकदम धर्म-पारायण आर भगवान से डरने वाले।"

"मगर तुम तो किसी से नहीं डरते।"

"नहीं एक चीज से मैं भी डरता हूं।"

"तुम किस चीज से डरते हो?"

"गरीबी से।"

"वह तो तुमने अब दूर कर ली है।" कुलवन्त हंसा।

"हां अपने तरीकों पर चता तो दूर हुई है।" खाली गिलासों में फिर से व्हिस्की डालता हुआ सुजान बोला- "पिताजी के तरीकों पर चलता तो इस शानदार कोठी की जगह उसी किराए के मकान में रह रहा होता।"

"खैर तुम किस्सा पूरा करो।"

"तो पिताजी ने पूरी ईमानदारी से शेफाली की सम्पत्ति की देखभाल की। पदमचन्द का मैनेजर उमाशंकर भी पिताजी जैसा ही ईमानदार और कर्त्तव्य पारायण था। दोनों ने पैसा भी इधर से उधर नहीं होने दिया। मैंने पिताजी को बहुत समझाने की कोशिश की कि आज के जमाने में ऐसी ईमानदारी की कोई कीमत नहीं। जब मौका हाय में है तो क्यों नहीं अपनी और अपने घर वालों की जिन्दगी बना लेते। लेकिन पिताजी ने मेरी कभी एक न सुनी। उधर मैं यह सोच-सोचकर परेशान होता जा रहा था कि साल दो साल में शेफाली इक्कीस साल की हो जाएगी। अमरीका से लौट कर सारी जायदाद सम्हाल लेगी और हमारे हत्थे कुछ भी न लगेगा।"

सुजानसिंह ने कुछ रुककर एश ट्रे में सिगरेट की राख झाड़ी और फिर बोला-"मगर छः महीने पहले पिताजी को अचानक दिल का दौरा पड़ा और उनका देहान्त हो गया। उसके बाद उनका सारा कामकाज मेरे हाथ में आया। अब तुम्हें तो मालूम ही है कि यह पब कोठी कार-वार यानि सारे ठाठ-बाट पिछले छ: महीने में ही बनाए हैं मैंने।"

"शेफाली की जायदाद में घपला करके?"

"अब तुमसे तो कुछ छुपा नहीं है। मैंने जब जायदाद के काम में दखल देना शुरू किया तो वह मैनेजर का बच्चा उमा शंकर मेरे रास्ते में टांग अड़ाने लगा। लिहाजा मैंने उसे भी नौकरी से निकाल दिया।"

"और उसे निकालने के बाद तुम शेफाली की जायदाद से खुलकर खेलने लगे। खैर यह बताओ कि अब तक कितने का घपला किया है तुमने?"

कुलवन्त के इस सवाल पर सुजान कुछ हिचकिचाया।

"देखो प्यारे, मैंने तुमसे कभी कछ नहीं छपाया।" उसकी हिचकिचाहट को देखकर कुलवन्त बोला- "तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि मेरे ट्रांसपोर्ट के धंधे की आड़ में स्मगलिंग का काम होता है। जब कभी कोई कानूनी अड़चन आई तो मैं सलाह के लिए सीधा तुम्हारे पास आया और सब कुछ सुनकर तुमने मुझे सही सलाह भी दी। अपने बाप की वजह से तुम खुलकर मेरे साथ नहीं आ सके वरना मैंने तुम्हें अब तक लख-पति बना दिया होता। खैर जो गुजर गया सो गुजर गया। मेरे बल पर तुम मेरी मदद करते रहे थे। अब तुमने मुझे अपनी मदद के लिए बुलाया मैं आ गया। लेकिन दोस्ती में सच्चे दिल से एक दूसरे की मदद तभी की जा सकती है जब बीच में कोई परदा न हो। मुझे तुमसे कुछ लेना नहीं है। यह सब तो मैं इस लिए पूछ रहा हूं कि अगर दो चार पांच लाख रुपए की बात है तो मुझसे लेकर जायदाद का हिसाब ठीक कर दो। बाद में मेरे पैसे मुझे धीरे-धीरे देते रहना।"

"दो चार पांच लाख की बात नहीं है।"

"फिर कितने की है?"

"मोटे तौर पर पचास लाख के करीब...।"

"पचास लाख का घपला।" आश्चर्य के साथ कुलवन्त के मुंह से निकला-"बहुत मोटा मामला है।"